सुन लो मेरे प्यारे बच्चो
तुम्हें माँ भारती पुकारती ।
उपकार है उसके कहीं तुम पर
शायद इसीलिए वो ललकारती ।
देख आज के इस इंसान को
उसका जी घबराता है ।
सोचती है वो भी ये
ये कैसे भारत के भाग्य विधाता है।
देख अपनी बेटियों कि दुर्दशा
वो तड़प उठती है ।
इस भारत को बदलने का
तुमसे वो निवेदन करती है ।
क्या कर्तव्य नहीं तुम्हारे कोई
(उस धरा के प्रति , अपनी इस मां के प्रति ,
जिसने तुम्हें सब कुछ दिया । )
सुन लो मेरे प्यारे बच्चो
माँ भारती पुकारती।
लेखक विरेन्द्र भारती
8561887634
तुम्हें माँ भारती पुकारती ।
उपकार है उसके कहीं तुम पर
शायद इसीलिए वो ललकारती ।
देख आज के इस इंसान को
उसका जी घबराता है ।
सोचती है वो भी ये
ये कैसे भारत के भाग्य विधाता है।
देख अपनी बेटियों कि दुर्दशा
वो तड़प उठती है ।
इस भारत को बदलने का
तुमसे वो निवेदन करती है ।
क्या कर्तव्य नहीं तुम्हारे कोई
(उस धरा के प्रति , अपनी इस मां के प्रति ,
जिसने तुम्हें सब कुछ दिया । )
सुन लो मेरे प्यारे बच्चो
माँ भारती पुकारती।
लेखक विरेन्द्र भारती
8561887634
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