Thursday, August 31, 2017

हुनर विरेन्द्र भारती


जिंदा कर तू अपने उस हुनर को ।
जो ले जाए तुझे शिखर को ।।

जिंदा कर तू अपने उस हुनर को ।
जो झुकने ना दे तेरे सिर को ।।

अरे मर्द है तो मर्द सी बात कर ।
यूँ प्यार व्यार के चक्कर में जिंदगी बर्बाद ना कर ।।

जिंदा कर तू अपने उस हुनर को ।
जो पहचान दिलाए तेरे सफर को ।।

जिंदा कर तू अपने उस हुनर को ।
जो संवारे तेरे व्यक्तित्व  को ।।

अरे जिंदा है तो मुर्दो सी बात ना कर ।
दूसरों के लिए भी कुछ  करामात कर ।।

जिंदा कर तू अपने  उस हुनर को ।
जो बनाएं नव तेरे जीवन  को  ।।

जिंदा कर तू खुद को ।
जिंदा कर तू अपने हुनर को । जिंदा कर ।।

लेखक विरेन्द्र  भारती 
8561887634

Saturday, August 26, 2017

रे नर वो किसान है (किसान)


कर - कर मेहनत थक गया ।
रे नर वो यूँही  पक गया ।।

सरकार ने ली नहीं सुध ।
और वो धुप में सक गया ।।

मेहनत उसकी कितनी है ।
और मजदूरी कितनी सी ।।

वो फिर भी कभी डिगा नहीं ।
वो फिर भी कभी मिटा नहीं ।।

रे नर वो किसान है ।
उससे देश का मान है ।।

वो जो नहीं तो बंजर सारा जहाँन है ।
रे नर वो किसान है ।।

वो पालता सबका पेट ,करता ना गुणगान है ।
रे नर वो किसान है, रे नर वो किसान है ।।

वो गर्व है इस देश का ।
वो सर्व है इस देश का ।।

सब सोचों उसका भला , जो पोषित कर रहा सारा जहाँन है ।
रे नर वो किसान है, रे नर वो किसान है ।।

करता निवेदन भारती एक आयोग उसको भी ला दों ।
ओ सरकार चलाने वालों उसका भी ओदा बढ़ा दो ।।

है वो भी पिता तुल्य रे नर ।
क्योंकि वो करता काम महान है ।।

रे नर वो किसान है ।
 रे नर वो किसान है ।।
  
उसके ही दम पे जीवित है हस्तियाँ ।
बिन उसके कैसे टिकती बस्तियाँ ।।

रे मानव वो महान है ।
वो जो किसान है ; वो जो किसान है ।।

लेखक  विरेन्द्र  भारती 
8561887634

कसूर

कसूर
अक्सर सोचता हूँ क्या कसूर हैं उस गरीब बच्चे का जो पढ़ नहीं पाता
क्या कसूर हैं उसका जो वो सड़क किनारे हैं सोता
क्या कसूर हैं उसका जो वो दो वक़्त की रोटी नहीं खा पाता
आखिर क्या कसूर हैं उसका जो वो अपना तन भी नहीं ढक पाता
आखिर क्या कसूर हैं उसका जो वो हँस नहीं पाता
आखिर क्या कसूर हैं उसका जो वो ताने सुनता जाता
आखिर क्या कसूर हैं उसका जो वो दिन रात चलता जाता
आखिर क्या कसूर हैं उसका जो वो गन्दगी मैं हैं रहता
आखिर क्यों वो कई दफा रोता हैं
क्योंकि
अक्सर सोचता हैं वो भी
मैं भी पढ़ने जाऊँ
मैं भी अपने घर मैं सोऊँ
मुझे भी अच्छा खाना मिले
पहनने को अच्छे कपडे मिले
मैं भी खेलू दोस्त बनाऊँ
उनके साथ मस्ती करुँ हँसू
कोई मुझे गन्दी गाली ना  दे
छोटी नजरो से ना देखें
मैं भी आराम करू सोऊं
एक अच्छी जगह पर रहूँ
आखिर क्या कसूर हैं मेरा ?

क्या कसूर  ?
कोई बतायें तो
क्या गरीब होना गुनाह हैं ?
या गरीब के  घर मैं पैदा होना ?
और क्यों ?
  मुझे  भी पढ़ना हैं
वो सब करना हैं जो दूसरे   करते हैं
 आखिर क्यों नहीं कर सकता मैं ये सब
कोई  बताये मुझे कसूर मेरा ?

लेलेखक विरेन्द्र  भारती
8561887634

गजल एक भारती