रे मानव क्या पाया तुने आकर इस संसार में।
क्यों किया तुने तेरा मेरा जब नहीं तेरा यहाँ बसेरा ।।भिखारी भी यहाँ से खाली गया ।
करोड़पती भी यहाँ से खाली गया ।।
चली गई वो सब महान हस्तियाँ भी ।
जिन्होंने काम भारी किया ।।
अरे क्यों जोड़ी तुने पाई-पाई ।
क्यों नहीं तुने मानवता कमाई ।।
पता था तुझे जाना है मुझे।
एक दिन खाली हाथ।।
इस पराई दुनिया में क्यों तुने माया कमाई ।।
सफल वहीं हुआ रे मानुष ।
जिसने सत् कर्म कर प्रभू भक्ति पाई ।।
मूर्ख नहीं थे वो ऋषि महामुनी ।
मूर्ख नहीं थे वो दधिची ।।
रे छोड़ माया जिसने प्रमू भक्ति है कमाई ।
तर गया जीवन उसका आँच कभी ना आई ।।
अरे मति अन्ध मैं भारती कहूँ इतना ।
क्यों मूर्ख सा काम करे ।।
बड़ी मुश्किल मिली ये मानुष योनी ।
सोच इसे ऐसे नहीं खोनी ।।
एक दिन जाएगा यहाँ से सब कुछ तेरा ।
रे पागल यहाँ तेरा रेन बसेरा ।।
क्यों सोचत-सोचत जिंदगी गँवाई ।
क्यों टाँग अपनी खान पसाई ।।
कर ले कुछ कर्म यहाँ ।
कर ले कुछ धर्म यहाँ ।।
यहीं साथ जाएगा रे ।
क्या सोचत सोचत रे ।।
चार दिन मिले जीवन के ।
दो फालतू गँवाए रे ।।
और दो क्यों माया में फँसाए रे ।
सब जाएगा रे सब जाएगा।।।
लेखक विरेन्द्र भारती
मो. 8561887634
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