Wednesday, May 10, 2017

सब जाएगा रे

रे मानव क्या पाया तुने आकर इस संसार में।
क्यों किया तुने तेरा मेरा जब नहीं तेरा यहाँ बसेरा ।।

भिखारी भी यहाँ से खाली गया ।
करोड़पती भी यहाँ से खाली गया ।।

चली गई वो सब महान हस्तियाँ भी ।
जिन्होंने काम भारी किया ।।

अरे क्यों जोड़ी तुने पाई-पाई ।
क्यों नहीं तुने मानवता कमाई ।।

पता था तुझे जाना है मुझे।
एक दिन खाली हाथ।।

इस पराई दुनिया में क्यों तुने माया कमाई ।।

सफल वहीं हुआ रे मानुष ।
जिसने सत् कर्म कर प्रभू भक्ति पाई ।।

मूर्ख नहीं थे वो ऋषि महामुनी ।
मूर्ख नहीं थे वो दधिची ।।

रे छोड़ माया जिसने प्रमू भक्ति है कमाई ।
तर गया जीवन उसका आँच कभी ना आई ।।

अरे मति अन्ध मैं भारती कहूँ इतना  ।
क्यों मूर्ख सा काम करे ।।

बड़ी मुश्किल मिली ये मानुष योनी ।
सोच इसे ऐसे नहीं खोनी ।।

एक दिन जाएगा यहाँ से सब कुछ तेरा ।
रे पागल यहाँ तेरा रेन बसेरा ।।

क्यों सोचत-सोचत जिंदगी गँवाई ।
क्यों टाँग अपनी खान पसाई ।।

कर ले कुछ कर्म यहाँ ।
कर ले कुछ धर्म यहाँ ।।

यहीं साथ जाएगा रे ।
क्या सोचत सोचत रे ।।

चार दिन मिले जीवन के ।
दो फालतू गँवाए रे ।।

और दो क्यों माया में फँसाए रे ।
सब जाएगा रे सब जाएगा।।।

लेखक विरेन्द्र भारती
 मो.   8561887634

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गजल एक भारती