हाँ हे ना मुझे आदत
तुझे यूँ वक्त बेवक्त याद करने की
दिन-रात तुझे प्यार करने की
तेरे और सिर्फ तेरे बारे में सोचने की।
हाँ हे ना मुझे आदत
तेरी हर आदत से प्यार करने की
चाहें वो अच्छी हो या बुरी
जो तुझे पसंद वो मुझे पसंद।
हाँ हे ना मुझे आदत
तेरे साथ की
तेरी आवाज की
तेरी हर अदा की
हाँ हे ना मुझे आदत
तेरे उस प्यार की
जो लुटाती थी तु कभी मुझ पर
निस्वार्थ, निश्छल, बेवजह, बेमतलब।
हाँ हे ना मुझे आदत
तेरा ही चेहरा देखने की
देखते-देखते उसमें खो जाने की
और फिर तेरे ख्यालों के साथ सो जाने की।
हाँ हे ना मुझे आदत
आँसूओं से तकिया भिगोने की
क्योंकी अब जिया नहीं जाता तेरे बिन
बिन तेरे खाली सा लगता है मुझे वजूद मेरा।
लेकिन तुझे भी तो आदत हे ना
मुझे तनहा छोड़ जाने की
हर वक्त रूलाने की
दिल तोड़ जाने की।
हाँ हे ना मुझे तेरी आदत
हाँ रहेगी मुझे तेरी आदत
हमेशा हमेशा
तु लौट या ना लौट।।
लेखक विरेन्द्र भारती
मो. 8561887634

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